भरतपुर के जाट वंश का इतिहास
राजस्थान के पूर्वी भाग यथा - भरतपुर, धौलपुर, डीग आदि पर जाट वंश का शासन था। यहाँ जाट शक्ति का उत्थान ओरंगजेब के शासन काल में हुआ। ओरंगजेब के विरोद्ध पहला संगठित विद्रोह दिल्ली और आगरा क्षेत्र में बसे जाटो ने किया।
लोहागढ़ किला |
1670 ई ,में गोकुल जाट ने विद्रोह का नेतृत्व किया। परन्तु उसे बंदी बना कर मार डाला। इसके पश्चात राजा राम जाट ने विद्रोह का नेतृत्व किया। राजा राम ने सिकंदरा ( आगरा ) में स्थित अकबर के मकबरे को लूटा और उसकी अस्थियां निकल कर उसका हिन्दू विधि विधान के साथ दाह संस्कार किया। 1688 ई में ओरंगजेब के पौत्र बीदर बक्श और आमेर के राजा बिशन सिंह ने राजाराम को परास्त कर दिया।
चूडावण (1695 - 1721 ई )
1688 ई में राजा राम की मृत्यु के बाद विद्रोह के नेतृत्व चूडावण जाट ने संभाला। उसने भरतपुर में जाट राज्य की स्थापना की। ओरंगजेब की मृत्यु तक उसने जाटो की शक्ति को संगठित किया। थूण के किले का निर्माण करवाया। 1721 ई में चूडावण में जहर खा कर आत्महत्या कर ली।
बदनसिंह (1723 - 1755 ई )
चूडावण के भतीजे बदनसिंह को जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने डीग की जागीर दी एवं ब्रजराज की उपाधि दी। बदन सिंह ने डीग, कुम्हेर, भरतपुर व बैर में नए दुर्ग बनवाये। उसने जाट राज्य का विस्तार किया। उसने वृन्दावन में एक मंदिर और डीग में सूंदर महल बनवाये। बदन सिंह के पुत्र सूरजमल सोधर के निकट दुर्ग का निर्माण करवाया जो बाद में भरतपुर के दुर्ग के नाम से जाना जाता है। बदन सिंह ने उसे अपनी राजधानी बनाया।
महाराजा सूरजमल (1756 -1755 ई )
सूरजमल को जाटो का प्लेटो और जाटो का अफलातून कहते है। भरतपुर के किले का निर्माण करवाया एवं अपनी राजधानी भरतपुर को बनाया। पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा सेनापति सदाशिव राव से अनबन हो जाने पर युद्ध में भाग नहीं लेता है। परन्तु भागते हुए मराठा सैनिको को भरतपुर में शरण देता है। राजमहल एवं बगरू के युद्ध में ईश्वरी सिंह की सहायता करता है। 1754 ई में दिल्ली पर आक्रमण करता है। वहां से नूरजंहा का झूला उठाकर लता है और इन झूलो लो डीग ने महलो में स्थापित करवाता है।
डीग के जल महल का निर्माण सूरज सिंह ने ही करवाया। सूरजमल की मृत्यु 1763 ई में नजीब खा के खिलाफ लड़ते हुए हुई।
सूरजमल ने भरतपुर में नवीन प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की। जिसमे पद का आधार योग्यता को बनाया गया। भरतपुर ने दिवान को मुख्त्यार कहते है।
जवाहर सिंह
सूरजमल की मृत्यु के बाद जवाहर सिंह राजा बनता है। 1774 ई में दिल्ली पर आक्रमण करता है। एवं दिल्ली के किले से अष्ट धातुओं के बने दरवारे लेकर आता है और इन्हे भरतपुर के किले में लगवाता है। ये दरवाजे मूल रूप से चितौड़ के किले में लगे हुए थे, जिन्हे अकबर चितौड़ अभियान के दौरान आगरा ले गया था। ओरंगजेब इन्हे आगरा से दिल्ली ले आया था।
जवाहर सिंह ने इस जीत के उपलक्ष में भरतपुर के किले में जवाहर बुर्ज का निर्माण करवाया। जवाहर बुर्ज में भरतपुर के राजाओ का राज तिलक किया जाता है।
कामा के युद्ध में जवाहर सिंह जयपुर के माधो सिंह के खिलाफ लड़ता है।
रणजीत सिंह
1803 ई में दूसरे अंग्रेज - मराठा युद्ध के दौरान जसवंत राव केलकर को भरतपुर में शरण देता है। कई प्रयासों के बावजूद अंग्रेज किले को जीत नहीं सके इस लिए भरतपुर के किले को लोहागढ़ कहा जाता है।
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