जालौर के चौहानों का इतिहास
नाडौल शाखा के कीर्तिपाल ने 1181 ई के लगभग जालौर के परमारो से छीनकर अपने अधिकार में ले लिया। इस प्रकार कीर्तिपाल जालौर शाखा के चौहान वंश का प्रथम संस्थापक था। प्राचीन शिलालेखों में जालौर का नाम जाबालीपुर नाम सुवर्णगिरि मिलता है जिसको आज कल सोनगढ़ कहते है। इसी कारण यहाँ के चौहान सोनगरा चौहान कहलाए। नैणसी ने कीर्तिपाल को 'कीतू एक महान शासक' कहकर सम्भोधित किया।
जालौर दुर्ग |
उदयसिंह (1205 - 1257 ई )
इसी शासन काल में 1228 ई में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने जालौर पर आक्रमण किया और जालौर दुर्ग का घेर डाला। उदयसिंह सोनगरा इल्तुतमिश के सारे प्रयास असफल कर दिए। कान्हड़दे प्रबंध के अनुसार 1254 ई में नसीरूद्दीन महमूद ने उदयसिंह पर आक्रमण किया, परन्तु मुस्लिम सेना को परास्त होकर वापस लौटना पडा।
चाचीगदेव (1257 - 1282 ई )
दशरथ शर्मा के अनुसार उदयसिंह के पुत्र चाचीगदेव ने राज्य की बढ़ाया। वह नसीरूद्दीन महमूद तथा बलबन समकालीन था। जिन्होंने इसको किसी प्रकार से सताने का साहस नहीं किया। बरनी के अनुसार चाचिगदेव के बाद उसका पुत्र सामंतसिंह जालौर का सशक्त बना।
कान्हड़दे चौहान (1305 - 1311 ई )
कान्हड़दे और खिलजी विरोध का कारण :
- कान्हड़दे प्रबंध में लिखा है कि जब अल्लाऊद्दीन खिलजी ने 1298 ई में गुजरात विजय के लिए अभियान किया तो मार्ग में जालौर पड़ता था। उसने कान्हड़दे को कहलवया कि शाही सेना को अपनी सीमा से गुजरने दिया जाए परन्तु कान्हड़दे ने मना कर दिया। परन्तु उस समय खिलजी सेना, नेतृत्व उलूगु खां और नुसरत खां कर रहे थे पर राजपूत सेना ने हमला बोल दिया। उलूगु खां को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।
- तारीख-ए-फरिश्ता के अनुसार इस अभियान में 1305 ई में सेना भेजकर कान्हड़दे को गौरवपूर्ण संधि का आश्वासन देकर दिल्ली ले गया। खिलजी के दरबार में कान्हड़दे अपने आप को अपमानित महसूस करने लगा। एक दिन खिलजी के घमंड में आकर कान्हड़दे के सामने यह कह दिया कि कोई हिन्दू शासक उसकी शक्ति के सामने टिक नहीं सका। ये शब्द कान्हड़दे को चुभ गए और सुल्तान को अपने विरुद्ध लड़ने की चुनौती देकर वहां से जालौर लौट आया और युद्ध की तैयारी करने लगा।
- नैणसी लिखता है कि जब कान्हड़दे का पुत्र वीरम अल्लाऊद्दीन के दरबार में सेवा दे रहा था तब हरम की एक राजकुमारी फिरोजा उससे प्रेम करने लगी। वीरम को उससे विवाह लिए बाध्य किया गया। राजकुमार तुर्क कन्या से विवाह करना अधार्मिक समझ चुपके से जालौर लौट आया। इस मानहानि से क्षुब्ध होकर सुल्तान ने जालौर पर धावा बोल दिया।
- कान्हड़दे प्रबंध में इसके उपरांत यह भी मिलता है सुल्तान को जालौर पर आक्रमण करने ,में कोई सफलता न मिली तो फिरोजा स्वय गढ़ में गयी जहाँ कान्हड़दे ने उसका स्वागत किया, परन्तु पुत्र से उसका विवाह करने सा इंकार कर दिया। हताश होकर राजकुमारी दिल्ली लौट आई। कुछ वर्षो के उपरांत अल्लाऊद्दीन ने फिरोजा की एक धाय गुलबिहिश को आक्रमण के लिए भेजा। उसे कहा कि वीरम बंदी हो जाये तो उसे जिन्दा लाया जाये , यदि वह मर जाय तो उसका सिर काट कर दिल्ली लाया जाये। युद्ध में वीरम वीर गति को प्राप्त हुआ और उसका सिर काट कर दिल्ली ले जाया गया और राजकुमारी को दिया गया। राजकुमारी उसके साथ सती होने को तैयार हुई। अंत में दाह संस्कार के बाद यमुना में कूद कर मर गई।
- डॉ शर्मा के अनुसार उत्तरी भारत के अन्य दुर्गो को जिनमे चितौड़, रणथम्भोर आदि प्रमुख थे, सैनिक अड्डे बनाये रखने के लिए जालौर की स्वतंत्रता को समाप्त करने की सुल्तान की दृढ़ता अंतिम आक्रमण का कारण माना जाना चाहिए।
अल्लाऊद्दीन खिलजी का प्रथम जालौर अभियान (1308 ई ) : सिवाना दुर्ग का पतन
अल्लाऊद्दीन का द्वितीय जालौर अभियान (1311 ई ) : जालौर का पतन
परफेक्ट
ReplyDeleteThank you for providing information on the descendants of Songara Chohan
ReplyDeleteBro kya raj. Gk ke notes hein
ReplyDeleteKis chez ki preparation kar rahe ho
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