बाबा राम देव जी
राजस्थान के लोक देवताओ में पांच पीरो में जाने वाले लोक देवता में से रामदेव जी भी एक लोक देवता है। रामदेव जी राजस्थान के सबसे लोक प्रिय लोक देवता है। रामदेव जी राजस्थान में ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश, गुजरात और पाकिस्तान में भी लोग बहुत मानते है। रामदेव जी को हिन्दू लोग ही नहीं बल्कि मुसलमान लोग भी बहुत मानते है और रामदेव जी को रामसा पीर के नाम से सम्बोधन करते है। राजस्थान के लोग रामदेव जी को कृष्ण का अवतार मानते है।
रामदेवजी |
- जन्म - रामदेव जी का जन्म 14 शताब्दी में उडूकासमीर गांव की शिव तहसील में बाड़मेर में हुआ।
- पिता का नाम - रामदेव जी के पिता अजमाल जी तंवर था।
- माता का नाम - रामदेवजी की माता का नाम मैणा दे था।
- भाई का नाम - वीरम देव (बलराम के अवतार )
- बहन का नाम - लाछा, सुगना
- पत्नी का नाम - राम देव जी के पत्नी का नाम नैतल दे / निहाल दे था जो अमरकोट (पाकिस्तान ) के दल्ले सिंह सोढा की पुत्री थी।
- गुरु - रामदेव जी के गुरु का नाम बालीनाथ जी था जो जोधपुर के थे आज भी वहा बालीनाथ जी की गुफा बानी हुई है।
राम देव जी के समकालीन देवता मल्लिनाथ जी थे। मल्लिनाथ जी के द्वारा ही रामदेव जी को सातलमेर जो की पोकरण में है प्राप्त हुई थी। उस समय सातलमेर में भैरव नामक राक्षस का आतंक था। रामदेवजी ने भैरव का वध कर वहां की जनता को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। उसके पश्चात रामदेवजी सातलमेर में रहे। फिर उन्होंने सातलमेर अपनी भतीजी को दहेज़ में दे दिया।
राम देव जी अब रूणिचा, जैसलमेर में आकर बस गए। जैसलमेर में राजदेव जी ने कई लोगो का उद्धार किया। रूणिचा में पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए राम देवजी ने राम सरोवर तालाब बनवाया।
एक बार की बात है मक्का मदीना के 5 पीर राम देव जी का यश सुनकर जैसलमेर में उनसे ,मुलाकात करने आये। राम देवजी ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया। जब वे पीर भोजन करने के लिए बैठे तो उनके भोजन के बर्तन मक्का में ही रह गए थे और वे पीर केवल अपने बर्तन में ही भोजन करते थे इस कारण उन्होंने भोजन करने से इंकार कर दिया। तब रामदेव जी के उन्हें अपना चमत्कार दिखाया और वो बर्तन उन पांच पीर के सामने प्रकट हो गए। ये सब देख कर 5 पीर अचंभित हो गए और उन्होंने कहा " हम तो पीर है , आप तो पीरो के भी पीर है। " जब से रामदेव जी को पीरो के पीर कहा जाता है।
राम देव जी को रूणिचा में बसने के कारण "रूणिचा रो धणी " और " लीला रो असवार " भी कहा जाता है। राम देव जी का घोडा लीला था।
राम देव जी का जन्म भाद्रपद शुल्क द्वितीय को हुआ था इस लिए इस दिन को बाबे री बीज भी कहा जाता है।
1515 ई. में रामदेव जी ने भाद्रपद शूक्ल एकादशी को राम सरोवर तालाब के पास जीवित समाधी ली थी। राम देव जी एकमात्र ऐसे लोक देवता है जिसने जीवित समाधी ली थी। राम देव जी के समाधी लेने से एक दिन पूर्व रामदेव जी की धर्मबहन डालीबाई ने जीवित समाधी ली थी। डाली बाई मेघवाल जाति की महिला थी। मेघवाल जाति के भक्तो को रिखिया कहा जाता है।
राम देव जी का मेला भाद्रपद शुक्ल द्वितीय से एकादशी तक रूणिचा (रामदेवरा ) में प्रतिवर्ष भरता है।
राम देव जी ने कामङिया पंथ की। कामङिया पंथ की महिलाये मुख्यतः राम देव जी मेले के समय तेरहताली नृत्य करती है। तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना मांगी बाई है।
रामदेव जी एक मात्र ऐसे लोक देवता थे जो एक कवी भी थे उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक का नाम चौबीस वाणिया है। रामदेव जी की फड़ चौथ मॉल चितेरे द्वारा लिखी गई। रामदेव जी की फड़ बाचते समय रावणहत्ता वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है। रावण हत्ता एक तत वाद्य यंत्र है।
रामदेव जी से सम्बंधित कुछ शब्दावली :
- रामदेव जी के भक्त जो पैदल यात्रा करते है - जातरू
- रामदेव जी के भजन - ब्यावले (रम्मत लोकनाट्य प्रारम्भ करने से पहले भी गाये जाते है। )
- रामदेव जी का रात्रि जागरण - जम्मा
- रामदेव जी के चमत्कार - परचा /पर्चा
- रामदेव जी की पताका - नेजा (पचरंगी )
- रामदेवजी के पद चिन्ह - पग्लिये
रामदेव जी के मंदिर
- रामदेव जी का मुख्य मंदिर - रूणिचा, जैसलमेर
- छोटा रामदेवरा - जूनागढ़, गुजरात
- दूसरा रामदेवरा - खुंडियास , नागौर
- मंसुरिया पहाड़ी - जोधपुर
- सूरतखेड़ा - चित्तौरगढ़
- बिराटिया - पाली
- नवलगढ़ - झुंझुनू
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ReplyDeleteKajodlal
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