महाराणा सांगा के बारे में 10 रोचक तथ्य एवं उसका परिचय
राणा सांगा मेवाड़ ही नहीं बल्कि राजस्थान के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रखते है। उन्होंने कई मुस्लिम अक्रान्ताओ से लोहा लिया और अपनी विजय पताका को सातवे आसमान तक पहुंचाया। सांगा के अपने देश की गौरव रक्षा में एक आँख, एक हाथ और एक टाँग गवा दी थी। उसके शरीर पर लगे 80 घाव उसकी वीरता का कहानी बया करते थे। इतिहास में महाराणा सांगा का नाम अंतिम भारतीय हिन्दू सम्राट के रूप में अमर है। कर्नल टॉड ने राणा सांगा को सिपाही का अंश कहा। आज हम उसी महाराणा संग्राम के बारे में पढ़ने जा रहे है।
सांगा की प्राम्भिक परिस्थिति
महाराणा रायमल के 13 पुत्र और 2 पुत्रिया थी जिनमे से पृथ्वीराज, जयमल, राजसिंह, और संग्राम सिंह के नाम विशेष है। इस तीनो राजकुमारों में ही ज्यादा राजा बनाने की इच्छा थी। दूसरी और महाराणा रायमल का चाचा सारंगदेव भी अपने को राज्य का अधिकारी मानता था।
ऐसा माना जाता है कि तीनो राजकुमार एक बार अपनी जन्म पत्री लेकर एक ज्योतिषी के पास पहुंचे। ज्योतिषी ने संग्राम सिंह का राजयोग बड़ा बलिष्ट बताया। ये बात सुनकर पृथ्वीराज के तलवार निकली और सांगा पर वार किया इस कारण सांगा की आँख चली गई। तभी वहा चाचा सारंग देव आ पंहुचा तब सारंगदेव के कहा कि इस बात का फैसला भीमल गांव के चारण जाति की पुजारिन से,जो की चमत्कारी है, करा लेवे।
तीनो राजकुमार पुजारिन के पास पहुंचे तब पुजारिन के भी ज्योतिषी की बात का समर्थन किया। ये सुनते है तीनो में वही युद्ध शुरू हो गया। सांगा वहा से भाग जाता है और सवंत्री गांव में पहुँचता है। वहाँ राठौड़ बीदा ने सांगा को शरण दी और स्वय जयमल से साथ लड़ता हुआ मारा गया। इसके बाद सांगा अजमेर पंहुचा जहां कर्मचंद पंवार ने उसे पनाह दी और वहां कुछ समय अज्ञातवास में रहकर अपनी शक्ति का संगठन करता रहा।
कुछ सालो बाद पृथ्वीराज की मृत्यु हो गई और जयमल सोलंकियो से युद्ध करता मारा गया। सारंगदेव की हत्या पृथ्वी राज के द्वारा कर ही दी गई। इस प्रकार संग्राम सिंह का रास्ता साफ हो गया और सांगा का राजतिलक होना निश्चित हो गया। 27 वर्ष की उम्र में अजमेर में 1509 ई में मेवाड़ के राज्य का स्वामी बना दिया गया। राणा सांगा को भारतीय इतिहास में हिन्दूपत के नाम से विख्यात है।
सांगा का गुजरात संघर्ष
गुजरात मेवाड़ का संघर्ष महाराणा कुम्भा के समय से रहा है। परन्तु राणा सांगा समय गुजरात और मेवाड़ का संघर्ष ईडर रियासत के उत्तराधिकारी के कारण हुआ। ईडर रियासत के उत्तराधिकारी का संघर्ष भारमल और रायमल के बीच हुआ। इसमें रायमल को महाराणा सांगा का साथ मिला सांगा ने अपनी पुत्री की सगाई रायमल से की थी। और भारमल का साथ गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर ने दिया। इस प्रकार दोनों की सेना कई बार आमने सामने हुई और अंत में सांगा की विजय हुई।
राणा सांगा और मालवा का सम्बन्ध
मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी और महाराणा सांगा के बीच संघर्ष राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा के कारण हुआ। महाराणा सांगा ने मालवा से निष्काषित मेदनीराय को गागरोन और चंदेरी की जागीर सौप दी। 1519 ई में महमूद खिलनी के इसे युद्ध का अवसर समझ कर गागरोन पर युद्ध कर दिया। परन्तु महाराणा सांगा ने महमूद खिलजी का हरा दिया और उसे बंदी बना लिया। कुछ समय बंदी रहने के बाद सांगा ने खिलजी को ससम्मान मुक्त कर दिया।
दिल्ली सल्तनत और मेवाड़ संघर्ष
महाराणा सांगा ने दिल्ली को निर्बल हाथो में पाकर उसके अधीनस्थ वाले मेवाड़ के निकटवर्ती भागो को अपने राज्य में मिलाना आरम्भ कर दिया परन्तु जब सत्ता इब्राहिम लोदी के हाथ में आई तो 1517 ई सांगा और लोदी में मध्य खातोली का युद्ध हुआ।
इस हार का बदला लेने के लिए सुल्तान ने मिया हुसैन फरमूली तथा मियाँ माखन के साथ महती सेना राणा के विरूद्ध बदला लेने भेजा। इस प्रकार 1518 ई में बारी का युद्ध हुआ और इस युद्ध में भी सांगा की जीत हुई।
सांगा और बाबर
बाबर ने जब दिल्ली और आगरा जीत लिया तब वह 5 दिन आगरा रूका फिर वह फ़तेहपुर सीकरी पर अधिकार कर पड़ाव डाला। बयाना पर अधिकार करने के लिए बाबर ने पहले अपने दोस्त इश्कआका को भेजा फिर अपने बहनोई मेहंदी ख्वाजा को भेजा। सांगा ने इन दोनों द्वारा किये गए प्रयासों को निष्फल कर दिया। ये युद्ध 16 फरवरी 1527 में बयाना के युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में मारवाड़ के शासक राव गांगा का पुत्र मालदेव , चंदेरी के मेदनीराय ,सलूम्बर के रतनसिंह आदि कई राज्यों के शासक ने भाग लिया।
इस हार का बदला लेने के लिए बाबर ने 17 मार्च 1527 में खानवा में फिर अपनी सेना की शक्ति और मनोबल उठा कर आक्रमण किया। युद्ध ने मैदान में राणा सांगा घायल हो गया तब इसका स्थान हलवद के झाला राजसिंह के पुत्र झाला अज्जा ने संभाला। परन्तु सांगा की सेना को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाने के कारण युद्ध में पराजय स्वीकार करनी पड़ी।
युद्ध के समय सांगा मूर्छित हो गया उसको पालकी में रख कर बसवा ले जाया गया। जैसे ही सांगा को होश आया तो वह फिर से युद्ध में जाने के लिए उद्यत हो गया और युद्ध के मैदान में बाबर से टक्कर लेने के लिए आ डटा। जब उसके साथियो ने देखा की इस युद्ध में मेवाड़ का सर्वनाश हो जायेगा तो सब ने मिलकर सांगा को विष दे दिया। जिसके फलस्वरुप जनवरी 1528 को 46 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई। उसका शव कालपी से मांडलगढ़ ले जाया गया जहाँ उसका समाधी स्थल आज भी उस महान योद्धा का स्मरण दिया रहा है।
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