राजस्थान के जातीय नृत्य
राजस्थान में लोक नृत्य का बहुत महत्त्व है। हर राज्य के अपनी संस्कृति वह के लोगो के रहन सहन और वह की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार होती है। वह के जाति, जनजाति, आदिवासी द्वारा किये जाने वाले लोक नृत्यो में वहा के संस्कृति और जनजीवन की झलक देखने को मिलती है।
सपेरा जाति के नृत्य
कालबेलिया नृत्य
कालबेलिया नृत्य |
सपेरा जाति का यह एक प्रसिद्ध नृत्य है। इस नृत्य में महिलाये बड़े घेर वाला काला घाघरा और पैर में घुंगरू बांध कर नृत्य करती है। नृत्य में पुरूषो द्वारा पुंगी व चंग बजाई जाती है। कालबेलिया नृत्य को 2010 में यूनेस्को द्वारा अमूर्त विरासत सूची में शामिल किया गया है। कालबेलिया नृत्य सीखने के किये आमेर के पास हाथी गॉव में स्कूल खोला गया है।
इण्डोनी नृत्य
कालबेलियों के स्त्री पुरूष द्वारा गोलाकार रूप में पूंगी और खंजरी पर किया जाने वाला नृत्य है।
शंकरिया नृत्य
ये प्रेम कहानी पर आधारित नृत्य है। इस नृत्य में अंग संचालन बड़ी ही सुंदरता से होता है।
पणिहारी नृत्य
यह कालबेलियों का युगल नृत्य है। इस समय पनिहारी गीत गाये जाते है।
बगड़िया नृत्य
यह कालबेलिया स्तरीय द्वारा भीख मांगते हुए गया जाता है। इसमें साथ में चंग बजाया जाता है।
गुर्जरो का नृत्य
चरी नृत्य
गुर्जर महिलाओ द्वारा मांगलिक अवसरों पर किया जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य में महिलाओ के सिर पर चरी रख कर किया जाता है। इस नृत्य में ढोल, थाली , बांकिया, आदि वाद्य यंत्रो का उपयोग किया जाता है। किशनगढ़ के पास गुर्जरो का चारि नृत्य बड़ा प्रसिद्ध है। किशनगढ़ की फलकू बाई इस नृत्य की प्रसिद्ध नृत्याँगना है।
झूमर नृत्य
ये नृत्य वीररस के प्रधान नृत्य है। इस नृत्य में झूमर वाद्य यंत्र बजाय जाता है।
मेवों के नृत्य
रणबाजा नृत्य
यह मेवों का युगल नृत्य है।
रतबई नृत्य
यह मेव स्त्रियों द्वारा सिर पर इंडोनी व खरी रखकर किया जाने वाल नृत्य है। पुरूष अलगोजा व दमामी वाद्य यंत्र बजाते है।
बलदिया के नृत्य
बलिदिया नृत्य
यह राज्य की घुमन्तू जाति बलदिया भाटो द्वारा किया जाने वाल नृत्य है।
राजस्थान के व्यवसायिक नृत्य
भवाई नृत्य
भवाई नृत्य |
राजस्थान के पेशेवर नृत्य में भवाई नृत्य बहुत लोकप्रिय है। इस नृत्य और वाद्य वादन में शास्त्रीय कला की झलक मिलती है। यह मेवाड़ क्षेत्र की भवाई जाति द्वारा सिर पर बहुत बड़े घड़े रखकर किया जाने वाला नृत्य है। यह वैसे तो पुरूषो का नृत्य है परन्तु आज कल महिलाओ द्वारा भी किया जाता है। रूप सिंह शेखावत प्रसिद्ध भवाई नृत्यकार है। जिन्होंने देश विदेश में इसे प्रसिद्धि दिलाई है। भवाई उदयपुर संभाग का प्रसिद्ध नृत्य है। बोरी, लोड़ी, ढोकरी, शंकरिया, सूरदास, बीकाजी और ढोल मारू नाच के रूप में प्रसिद्ध है।
तेरहताली
तेरहताली नृत्य पाली , नागौर , जैसलमेर, जिले की कामड़ जाति की महिलाओ द्वारा किया जाता है। ये नृत्य बाबा रामदेव की आराधना में तेरह मंजीरे हाथ पर पैर पर बांध कर किया जाता है। जिसमे नौ मंजीरे दाये पाँव में और दो हाथो की कोहनी के ऊपर और एक एक दोनों हाथो में होते है। यह पुरूषो के साथ मंजीरा, तानपुरा, व चौतरा वाद्य यंत्रो की सांगत में किया जाता है। मांगी बाई और लक्ष्मण दास कामड़ तेरहताली नृत्य के प्रमुख नृत्यकार है।
कच्छी घोड़ी नृत्य
कच्छी-घोड़ी |
यह राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र तथा कुचामन, परबतसर, डीडवाना आदि क्षेत्र में विवाहादि अवसरों पर व्यावसायिक मनोरंजन के रूप में किया जाता है। इसमें वाद्यो में ढोल, झांझ, बकियाँ व थाली बजती है। यह पेशेवर जातियां द्वारा मांगलिक अवसरों पर अपनी कमर पर घास की घोड़ी को बांधकर किया जाने वाला नृत्य है।
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