वागड़ - राजस्थान के दक्षिण भाग को कहा जाता है| यहां वागडी बोली बोली जाती है | इसमें शामिल जिले बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ है|
बागड़- अरावली का पश्चिम भाग जहां पुरानी जलोढ़ मिट्टी स्थित है| जिसका विस्तार पाली, नागौर, सीकर, झुंझुनू में है|
थली - मरुस्थल के ऊचे उठे हुए भाग को थली कहते हैं| यह बीकानेर, चूरू में स्थित है|
तल्ली - पश्चिम राजस्थान में बालुका स्तूप के मध्य भूमि को तल्ली या प्याला कहा जाता है| यह सर्वाधिक जैसलमेर में पाई जाती है|
राठी - 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्र को राठी कहा जाता है| इसमें शामिल जिले बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर है| इस क्षेत्र में पाई जाने वाली गाय की नस्ल को राठी कहा जाता है|
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अहिरवाटी - यादव (अहीर) वंश द्वारा शासित प्रदेश जिसका विस्तार मुख्यतः अलवर व जयपुर के कोटपूतली तहसील में है|
हाडोती - बेसाल्ट लावा के द्वारा निर्मित भौतिक प्रदेश| इसका विस्तार कोटा, बूंदी, बारां व झालावाड़ में है|
मालव - मध्यप्रदेश के मालवा पठार का विस्तार राजस्थान के जिन जिलों में है उन्हें मालव कहा जाता है इसमें शामिल जिले प्रतापगढ़ व झालावाड़ है|
शेखावटी - शेखावतो के द्वारा शासित प्रदेश इसमें शामिल है जिसमे चूरू, सीकर व झुंझुनू जिले शामिल है|
तोरावटी - कातंली नदी के अपवाह क्षेत्र को तोरावटी कहा जाता है इसमें शामिल जिले सीकर, झुंझुनू है|
मरू - अरावली के पश्चिम का शुष्क प्रदेश या मरुस्थलीय प्रदेश जिसमें मुख्यत जोधपुर संभाग शामिल है|
मेरु - मेरु अरावली को कहा जाता है जो राजस्थान का प्राचीनतम भौगोलिक प्रदेश है|
मत्स्य संघ - राजस्थान के एकीकरण के प्रथम चरण को मत्स्य संघ कहा जाता है जिसका गठन 18 मार्च 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा करौली को मिलाकर किया गया| मत्स्य संघ शब्द के एम मुंशी द्वारा दिया गया|
मत्स्य - ऐतिहासिक जनपद काल में अलवर के दक्षिण भाग को मतस्य से कहा जाता था| जिसकी राजधानी बैराट (जयपुर) थी|
मेवात - मेवात अलवर, भरतपुर जिले को कहा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में मेव जाति का अधिपत्य रहा है|
मेवल - डूंगरपुर और बांसवाड़ा के मध्य के पहाड़ी क्षेत्र को मेवल कहा जाता है| यह मुख्यतः भील जनजाति का क्षेत्र है|
बीड - शेखावटी के झुंझुनू जिले में पाई जाने वाली चारागाह भूमि को बीड़ कहा जाता है|
बीहड़/ डांग - चंबल नदी के क्षेत्र में अवनालिका अपरदन के कारण भूमि उबड़ खाबड़ हो जाती है उसे बीहड़ कहते हैं| इसमें शामिल जिले करौली, धौलपुर सवाई माधोपुर है|
भोराट - उदयपुर की गोगुंदा पहाड़ी व राजसमंद के कुंभलगढ़ पहाड़ी के मध्य का पठारी भाग है| यह राजस्थान का दूसरा ऊंचा पठार है|
भोमट - उदयपुर का दक्षिण भाग व मुख्यतः डूंगरपुर के मध्य का पहाड़ी क्षेत्र भोमट कहलाता है|
ब्रजनगर - राजस्थान के झालरापाटन का प्राचीनतम नाम ब्रजनगर है|
बृजनगर - राजस्थान के भरतपुर जिले को कहा जाता है जो मुख्यतः उत्तर प्रदेश से लगा हुआ है|
मारवाड़ - पश्चिम राजस्थान को कहा जाता है| जहाँ मुख्यतः मारवाड़ी बोली बोली जाती है| इसका विस्तार मुख्यतः जोधपुर संभाग में है|
मेवाड़ - ऐतिहासिक काल में उदयपुर, चित्तौड़, भीलवाड़ा को मेवाड़ कहा जाता था|
मेरवाड़ा - मारवाड़ व मेवाड़ के मध्य स्थित क्षेत्र जिसका विस्तार मुख्यतः अजमेर व आंशिक रूप से राजसमंद जिले में शामिल है| एकीकरण के अंतिम चरण राजस्थान में मिलाया गया था|
योद्धय - राजस्थान के उत्तरी भाग को कहा जाता है| गंगानगर व हनुमानगढ़ जिले शामिल है|
जांगल - बीकानेर व जोधपुर के उत्तरी भाग को कहा जाता है यहां मुख्य करौली वनस्पति पाई जाती है| इसकी राजधानी अहिच्छुत्रपुर थी| अहिच्छुत्रपुर ऐतिहासिक काल में नागौर को कहा जाता है|
सपादलक्ष - ऐतिहासिक काल में अजमेर को कहा जाता था| जहां चौहानों का शासन था|
ढूँढाड़ - ढूंढ नदी के कारण मुख्यत जयपुर, दोसा व टोंक शहर को ढूँढाड़ कहते थे|
शूरसेन - ऐतिहासिक जनपद काल में राजस्थान के पूर्वी भाग को शूरसेन कहा जाता था| इसमें शामिल जिले भरतपुर, करौली, धौलपुर है| इसकी राजधानी मथुरा थी|
हायहय - ऐतिहासिक काल में कोटा, बूंदी के क्षेत्र को कहा जाता था|
शिवि - उदयपुर, चित्तौड़ क्षेत्र को शिवि कहा जाता था| इसकी राजधानी नगरी या मध्यमीका थी|
चंद्रावती - सिरोही का प्राचीन नाम था| जहां से भूकंप रोधी इमारतों के साक्ष्य मिले हैं|
जाबालिपुर - जाबालि ऋषि की भूमि(जालौर)| यहां जाल वृक्ष अधिक पाए जाते हैं|
मालाणी - प्राचीन समय का बाड़मेर|
मांड - पश्चिम राजस्थान में मांड गायकी के क्षेत्र को माइंड कहा जाता था| जिसके चारों ओर का क्षेत्र जैसलमेर में वल्ल के नाम से जाना जाता है|
भीनमाल - यह जालौर में स्थित है| जिसे चीनी यात्री हेंगसांन द्वारा अपनी पुस्तक सी-यू-की की में पीलोमालो लिखा गया था|
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