राजस्थान के भौगोलिक प्रदेश
राजस्थान के भौतिक प्रदेश को सर्वप्रथम प्रोफेसर बी. सी. मिश्रा के द्वारा अपनी पुस्तक "राजस्थान का भूगोल" में 1967-68 को विभाजित किया|
इसमें राजस्थान को 7 भागों में बांटा गया|
राजस्थान के भौगोलिक प्रदेश |
राजस्थान की भौगोलिक संरचना के आधार पर इसे मुख्य रूप से चार भागों में बांटा गया है|
- पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश
- अरावली पर्वतीय प्रदेश
- पूर्वी मैदानी प्रदेश
- दक्षिण पूर्वी पठारी प्रदेश
पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश |
पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश - राजस्थान के उत्तर एवं उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित है जो कि राज्य के कुल भूभाग का 61. 11% भूभाग पर स्थित है| इस पर राजस्थान के कुल जनसंख्या का 40% भाग निवास करता है| इसी कारण यह राजस्थान का जनसंख्या व क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा भूभाग है| राजनीतिक दृष्टि से यह राजस्थान के 12 जिलों में फैला हुआ है|
- सीकर
- चूरु
- झुंझुनू
- गंगानगर
- हनुमानगढ़
- बीकानेर
- जैसलमेर
- बाड़मेर
- जालौर
- जोधपुर
- नागौर
- पाली
पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश का निर्माण टेथिस सागर में नदियों के द्वारा तलछट से हुआ है इसी कारण यहां पर धात्विक खनिज का अभाव एवं प्राकृतिक गैस व तेल के प्रधान पाई जाती है| इस प्रदेश की औसत वर्षा 25 से 50 सेंटीमीटर, समुद्र तल से ऊंचाई 150 मीटर, घग्घर, लूणी, काकनेय आदि नदियों एवं राष्ट्रीय मरू उद्यान अभ्यारण स्थित है|
थार का मरुस्थल - अफ्रीका के सहारा मरुस्थल का पूर्वी भाग माना जाता है जो कि विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व एवं जैव विविधता वाला मरुस्थल है इसी कारण डॉ ईश्वरी प्रसाद ने इसे रुक्षक्षेत्र कहा| यह पाकिस्तान एवं भारत के राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा में फैला हुआ है|
वर्षा के आधार पर इस प्रदेश को दो भागों में बांटा गया है|
- शुष्क मरुस्थल प्रदेश
- अर्द्ध शुष्क मरुस्थलीय प्रदेश
शुष्क मरुस्थल प्रदेश - यह मुख्य रूप से जैसलमेर एवं पश्चिम जोधपुर, उत्तर पश्चिम बाड़मेर, दक्षिण बीकानेर एवं शेखावाटी के क्षेत्र में फैला हुआ है| इस क्षेत्र की पश्चिम सीमा रेडक्लिफ रेखा एवं पूर्वी सीमा 25 सेंटीमीटर वर्षा रेखा बनाती है| इस क्षेत्र में अधिकांश रेत के टीले पाए जाते हैं जिन्हें धोरे कहा जाता है एवं स्थानीय भाषा में उन्हीं को धारियन कहते हैं|
तीन प्रकार के होते हैं|
अनुप्रस्थ बालुका स्तूप - ये रेत के टीले पवनो की दिशा के समकोण पर बनते हैं जो कि मुख्य रूप से जैसलमेर एवं उत्तरी मरुस्थल में पाए जाते हैं|
अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप - यह बालूका स्तूप पवनों की दिशा के समांतर बनते हैं जो मुख्य रूप से शुष्क मरुस्थलीय प्रदेश में पाए जाते हैं|
बरखान बालुका स्तूप - इनकी आकृति अर्धचंद्राकार होती है| यह सबसे अधिक गतिशील एवं सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं| जो मुख्य रूप से शेखावटी क्षेत्र में पाए जाते हैं|
बालुका स्तूप |
नोट - राजस्थान के कुल मरुस्थली भाग में लगभग 60% भाग पर बालू का स्तूप पाए जाते हैं एवं सभी प्रकार के बालुका स्तूप जोधपुर जिले में पाए जाते हैं|
गासी/ कारबा मार्ग - दो पवनानुवर्ती बालुका स्तूपो के बीच निम्न भूमि को गासी या कारबा मार्ग कहा जाता है|
चट्टानी मरुस्थल/ हमादा - जैसलमेर के चारों तरफ 65 किलोमीटर परिधि का क्षेत्र चट्टानी मरुस्थल कहलाता है| उसकी प्रमुख विशेषता -
इस क्षेत्र में राजस्थान का सबसे उत्तम किस्म का स्टील ग्रेड चुना पत्थर जैसलमेर के "सानू" क्षेत्र में पाया जाता है|
इस क्षेत्र में पीले रंग के पत्थर की प्रधानता पाई जाती है| इसी कारण जैसलमेर के दुर्ग व हवेलियां पीले रंग के पत्थर से बने हुए हैं|
इस चट्टानी प्रदेश के पश्चिम भाग में पोकरण से लेकर मोहनगढ़ तक 60 किलोमीटर लंबी एक पट्टी है जिसे "लाठी सीरीज" कहते हैं| इस लाठी सीरीज पर 'सेवण घास' का उत्पादन होता है|
इसके दक्षिण भारत में आकल गांव में स्थित है| जहां पर 'आकल कास्ट जीवाश्म पार्क' स्थित है| यहां पर लगभग करोड़ों वर्ष पुराने जुरासिक काल के लकड़ी के अवशेष रखे हुए हैं|
आकल गांव के पास जैसलमेर में 'चंदन नलकूप' स्थित है जिसे 'थार का घड़ा' कहा जाता है|
अर्ध शुष्क मरुस्थल प्रदेश - इसकी पश्चिम सीमा 25 सेंटीमीटर वर्षा रेखा एवं पूर्वी सीमा अरावली पर्वत माला बनाती है| इस क्षेत्र में वर्षा 25 से 50 सेंटीमीटर एवं अर्ध शुष्क जलवायु पाई जाती है| इस क्षेत्र में मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन पाए जाते हैं| यह मुख्य रूप से श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, चूरू, झुंझुनू, नागौर पाली, जालौर में फैला हुआ है|
इसे चार भागों में बांटा गया है|
लूनी बेसिन - लूनी और उसके सहायक नदियों से निर्मित मुख्य रूप से पाली, जालौर, बाड़मेर, जोधपुर में फैला हुआ है इसे 'गोडवाड़ प्रदेश' भी कहते हैं| इसे 'बारानी कृषि प्रदेश' के नाम से भी जाना जाता है|
इस क्षेत्र का सबसे बड़ा जलाशय 'उम्मेद सागर' जलाशय (जवाई बांध) है| जिसे 'मारवाड़ का अमृत सरोवर कहते है| इस क्षेत्र की मुख्य नहर परियोजना 'नर्मदा नहर परियोजना' है| जिसे राजस्थान के जालोर जिले व बाड़मेर जिले लाभान्वित होते है|
रोही मैदान - लूनी बेसिन में लूनी नदी एवं अरावली पर्वतमाला के बीच उपजाऊ क्षेत्र को रोही मैदान कहते हैं|
नागौर उच्च प्रदेश - यह लूनी बेसिन के उत्तर में मुख्य रूप से नागौर में स्थित है यहां की मिट्टी में सोडियम क्लोराइड के तत्व की प्रधानता पाई जाती है इस कारण यह क्षेत्र अनूपजाऊ है इसी क्षेत्र में राजस्थान की सबसे अधिक खारे पानी की झीले पाई जाती है| जैसे - डीडवाना, डेगाना, कुचामन, नावा, सांभर
इस क्षेत्र में नमक के तत्व की अधिकता का कारण अरब सागर के मानसून को माना जाता है|
कूबड़ पट्टी - यह नागौर, अजमेर की सीमा पर स्थित है| यहां के जल में फ्लोराइड के तत्व की प्रधानता के कारण इस क्षेत्र में 'फ्लोरोसिस' रोग हो जाता है| जिससे बुढ़ापे में लोगों की हड्डियां टेढ़ी हो जाती है|
शेखावटी बेसिन - यह मुख्य रूप से सीकर, चूरू, झुंझुनू में फैला हुआ है| इस क्षेत्र की प्रमुख नदी कांतली नदी है| इस क्षेत्र में अंतस्थली क्षेत्र कहा जाता है| इस क्षेत्र में स्थानीय छोटे तालाब या कच्चे कुएं को 'जोहड़' कहा जाता है|
घग्घर बेसिन - यह मुख्य रूप से श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ में घग्गर नदी से निर्मित है| इस क्षेत्र में घग्गर नदी के तट को 'नाली' कहा जाता है इस कारण यहां पर नाली नस्ल की भेड़े पाई जाती है| यह राजस्थान का सबसे अधिक उत्पादकता वाला क्षेत्र है एवं राजस्थान में सबसे अधिक नहरी सिंचित क्षेत्र है|
पश्चिम राजस्थान में प्राचीन जल के स्त्रोत जो कि वर्तमान में लुप्त हो रहे हैं-
टांका - पश्चिम राजस्थान में वर्षा के जल को इकट्ठा करने के लिए घरों के आंगन में जो स्थान बनाए जाते थे उन्हें टांका या आगोर कहा जाता था|
टाट या रण - पश्चिम मरुस्थल प्रदेश में दो बालुका स्तूप के मध्य निचले स्थान पर वर्षा के जल से बना दलदली क्षेत्र टाट/ रन कहलाता है| इस क्षेत्र में जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों के द्वारा 'खडीन कृषि' की जाती है|
नाड़ी - पश्चिम मरुस्थल में प्राकृतिक कारणों से बने हुए ऊचे-नीचे स्थान जिसमें वर्षा का जल इकट्ठा हो जाता है उसे नाड़ी कहते हैं| इस जल का उपयोग पशुपालन एवं दैनिक कार्यों में किया जाता है|
जोहड़ - शेखावटी क्षेत्र में स्थानीय छोटे तालाब कच्चे कुओ को जोहड़ कहा जाता है|
प्याला झील - दो बालुका स्तूप के बीच निचले भूमि में वर्षा का जल इकट्ठा होने से इन जिलों का निर्माण होता है| कभी-कभी यह जिले नमकीन हो जाती हैं जिन्हें 'सेलिना' के नाम से जाना जाता है|
तल्ली/ पोखर - दो बालुका स्तूप के बीच में निचली भूमि को तल्ली या पोखर कहा जाता है|
बावड़ी - सामान्यतः चौकोर व सीडी नुमा तालाब बावड़ी कहलाता है|
राजस्थान के पश्चिम भाग से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
सम गांव - जैसलमेर में स्थित पूर्णता वनस्पति रहित क्षेत्र है| यहां राजस्थान का सबसे कम वर्षा वाला स्थान है| यहां रेत के धोरों में फिल्मों की शूटिंग की जाती है जो कि वर्तमान में एक पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है|
पीवणा - पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश में पाए जाने वाला विषैला सर्प| मिट्टी के रंग का होता है इसकी लंबाई 1 फुट है| ऐसा माना जाता है कि यह सब काटता नहीं है बल्कि जहर छोड़ता है|
मरुस्थल का प्रसार - राजस्थान में मरुस्थल का धीरे-धीरे आगे बढ़ना, जिससे दिन प्रतिदिन भूमि बंजर होती जा रही है उसे ही मरुस्थल का प्रसार कहा जाता है| यह राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में भी बढ़ रहा है जैसे - गुजरात, पंजाब, हरियाणा |
सर/ सरोवर - राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र या पश्चिम मरुस्थलीय क्षेत्र में छोटे-छोटे तालाबों को सर/ सरोवर कहते हैं| जैसे - परबतसर(नागौर), लूणकरणसर(बीकानेर)
मावट - भारत में शीत काल के समय भूमध्य सागर चक्रवात (पश्चिम विक्षोभ) से होने वाली वर्षा को मावठ कहते हैं| यह गेहूं की फसल के लिए लाभदायक होती है| इसी कारण इसे 'रबी का अमृत' कहा जाता है|
मालाणी प्रदेश - लूनी बेसिन का मध्यवर्ती क्षेत्र मालाणी प्रदेश चलाता है| जो कि मुख्य रूप से जालौर एवं बालोतरा (बाड़मेर) में फैला हुआ है| मालाणी के गाय व घोड़े प्रसिद्ध है|
मरुधभिद पादप - पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश में मुख्य रूप से यह वनस्पति पाई जाती है| इसकी जड़े गहरी व पत्तियाँ कांटेदार होते हैं| जैसे - खेजड़ी, बबूल, केर आदि |
मरुधान या नखलीस्थान - पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश में जल की उपलब्धता वाले क्षेत्र में मुख्य रूप से वनस्पतिया पाई जाती है| जैसे - चंदन नलकूप, कोलायत झील (बीकानेर) आदि
Good job
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