राजस्थान की सभ्यताएं
राजस्थान में बनास नदी एवं उनकी सहायक नदीयों पर मानवीय हलचल सबसे पहली बार देखने को मिलती है|
पाषाण काल
बागोर (भीलवाड़ा) - यह सभ्यता कोठारी नदी के तट पर स्थित है| इसके उत्खनन कर्ता 1967-1969 में वीरेंद्र नाथ मिश्र एवं डॉ लेशिन ने किया| राजस्थान में यहां सबसे प्राचीन पशुपालन की अस्थियों के साक्ष्य मिले हैं| बागोर भारत का सबसे संपन्न पाषाण कालीन पाषाणी सभ्यता स्थल है| बागोर को 'आदिम संस्कृति का संग्रहालय' भी कहा जाता है| बागोर उत्खनन किए गए स्थानों को 'महा सतियो का टीला' कहा जाता है|
तिलवाड़ा (बाड़मेर) - यह लूनी नदी के किनारे स्थित है| यह बागोर की बस्ती के समकालीन थे| यहां भी पशु पालन के साक्ष्य मिले हैं और साथ ही साथ अग्निकुंड के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं|
जायल - नागौर
डीडवाना - नागौर
बूढ़ा पुष्कर - अजमेर
सिंधु घाटी सभ्यता के युग में राजस्थान के स्थान
कालीबंगा - राजस्थान में सबसे प्राचीन सभ्यता जो सिंधु नदी घाटी के पूर्ववर्ती और समकालीन सभ्यता है| यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में जहां प्राचीन सरस्वती नदी रहती थी| वर्तमान में घग्गर नदी बहती है|
कालीबंगा का अर्थ - काली चूड़ियां
कालीबंगा की सर्वप्रथम खोज 1952 में अमलानंद घोष ने 1961-1969 में इसका वास्तविक उत्खनन बी.के. थापर तथा बी. बी. लाल द्वारा किया गया| कालीबंगा से प्राक हड़प्पा और विकसित हड़प्पा के अवशेष मिले हैं|
इसे हड़प्पा सभ्यता की तीसरी राजधानी भी कहा जाता है|
- सर्वप्रथम जूते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं|
- कालीबंगा के लोग दो फसलों को उगाया करते थे - चना व सरसों |
- अग्नि वैदिकाय प्राप्त हुई है|
- कालीबंगा में लकड़ी के नालियां मिली है|
- मकान कच्ची ईटो व अलंकृत ईटो से बने थे|
- युग्मित शवाधान प्राप्त हुए हैं|
- भूकंप के अवशेष मिले हैं|
राज्य सरकार द्वारा कालीबंगा से प्राप्त पूरावशेषों के संरक्षण हेतु वह एक संग्रहालय की स्थापना कर दी गई है|
इसे हड़प्पा सभ्यता की तीसरी राजधानी भी कहा जाता है|
सिन्धु सभ्यता |
सोंथी सभ्यता - अमलानंद घोषणा बीकानेर के आसपास की सभ्यता को सोथीं सभ्यता कहा| इसे हड़प्पा सभ्यता का उद्गम स्थान बताया गया | इसे कालीबंगा प्रथम के नाम से जाना जाता है|
इस प्रकार के दो केंद्र यहां और मिले हैं - सोवणिया , पूंगल |
आहड़ - वर्तमान उदयपुर में स्थित है| क्योंकि यह सभ्यता बनास नदी के आसपास मिली है इसलिए इसे बनास सभ्यता भी कहते हैं| आहड़ स्थान बनास की सहायक नदी आयड़/ बेडच नदी के किनारे बसा हुआ था|
- इसे मुर्दो का टीला की सभ्यता के नाम से भी जाते हैं|
- यहां एक घर से 6 से 8 चूल्हे मिले हैं इससे संयुक्त परिवार व सामूहिक भोज की जानकारी मिलती हैं|
- यहां से एक यूनानी मुद्रा मिली है जिस पर अपोलो (सूर्य के देवता का चित्र) बना हुआ है|
- यहां से काले व लाल मृदभांड मिले हैं जिसे गोरे या कोठ कहते हैं|
- यहां से बैल की मृण मूर्ति मिली है इससे बनासोयन बुल कहते हैं|
- बिना हत्थे के जल पात्र मिले हैं ऐसे जल पात्र हमें ईरान की सभ्यता से प्राप्त हुए हैं जो ईरान के साथ संबंध को दर्शाते हैं|
- आहड़ का प्राचीनतम नाम आघाटपुर है| स्थानीय भाषा में इसे धूलकोट भी कहते हैं|
अक्षय कीर्ति व्यास ने यहां सर्वप्रथम उत्खनन प्रारंभ किया इसके बाद रतन चंद्र अग्रवाल, हंसमुख धीरज साकलिया, विरेंद्र नाथ मिश्र ने यहा खुदाई की|
आहड़ के अन्य केंद्र -
- गिलूण्ड - राजसमंद
- बालाथल - उदयपुर
- ओझियाणा - भीलवाड़ा
आहड़ से तांबा गलाने की भटिया प्राप्त हुई है इसलिए इसे ताम्रवती नगरी भी कहते हैं|
महाजनपद काल
कुल महाजनपद की संख्या - 16
इसमें से कुछ जनपद राजस्थान में भी स्थित थे |
मत्स्य महाजनपद - यह महाजनपद जयपुर व अलवर के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित था| मत्स्य महाजनपद का उल्लेख ऋग्वेद में है| इसकी राजधानी विराटनगर थी|
शूरसेन महाजनपद - यह जनपद भरतपुर व अलवर का उत्तरी भाग में था| इसकी राजधानी मथुरा थी|
कुरु महाजनपद - यह महाजन अलवर के उत्तरी भाग में स्थित था | इसकी राजधानी इंद्रप्रस्थ थी |
जनपद
शिवि जनपद - वर्तमान चित्तौड़ और उदयपुर जिले में स्थित था| इसकी राजधानी माध्यमिक का थी| यह राजस्थान का पहला उत्खनन स्थल नगरी थी |
मालव जनपद - वर्तमान में जयपुर व टॉक में था| इसकी राजधानी नगर (टोंक ) थी | इस जनपद के सर्वाधिक सिक्के प्राप्त हुए | ये सिक्के रेढ़ (टोंक ) नाम के स्थान से प्राप्त हुए | रेढ़ को प्राचीन भारत का टाटा नगर कहते है | इसके उत्त्खनन कर्ता कैलाश नाथ पूरी हे | मालव जनपद की सभ्यता को खेड़ा सभ्यता कहा जाता है |
योद्धय जनपद - यह जनपद वर्तमान में गंगानगर एवं हनुमानगढ़ में स्थित था | इस जनपद ने कुषाणों पर नियंत्रण प्राप्त किया | इसकी जानकारी शक राजा रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख में मिलती है |
अर्जुनायन जनपद - ये जनपद सीकर व अलवर में स्थित था |
साल्व जनपद - ये जनपद अलवर में स्थित था |
मौर्य काल
बैराट - यह स्थान वर्तमान में जयपुर में स्थित था | 1837 में कैप्टिन बर्ट ने बीजक की पहाड़ी से अशोक का भाब्रु शिलालेख खोजा | जिसमे अशोक द्वारा बौद्ध संघ के प्रति निष्ठा वयक्त गयी है | यहां से एक बौद्ध स्तूप और एक बूथ गोलाकार मंदिर प्राप्त होता है |
वर्तमान में अशोक का भाब्रु शिलालेख कलकत्ता में रखा गया है |
हैंस्वाँग के अनुसार बैराट में 8 बौद्ध मंदिर थे | जिन्हे हूण शासक मिहिरकुल ने तुड़वा दिया था | बैराट की लिपि को शंख लिपि कहा जाता है | यहां से शैल चित्र प्राप्त हुए है |
जयपुर के राजा रामसिंह द्वितीय ने बैराट में खुदाई करवाई तो सोने की संदूक प्राप्त हूई | जिसमे भगवान बौद्ध के अवशेष रहे होंगे |
चित्रांग मौर्य ने चित्तौड़गढ़ में किले का निर्माण करवाया | इसकी जानकारी जयचंद्र सूरी की पुस्तक कुमार पाल प्रबंध से मिलती है |
714 ई के मानसरोवर के अभिलेख में 4 मौर्य राजाओ के नाम मिलते है |
- महेशवर
- भीम
- भोज
- मान मौर्य
ये अभिलेख कर्नल जेम्स टॉड द्वारा लन्दन ले जाते समय समुद्र में गिर गया था |
738 ई में कणसवा अभिलेख (कोटा ) शिवालय में मौर्य राजा धवल का नाम मिलता है |
1936 ई में दयाराम साहनी ने यहा का उत्खनन किया था |
मौर्योत्तर काल
यूनानी शासक मिनांडर ने 150 ई. में माध्यमिका पर अधिकार कर लिया था| इसकी पुष्टि 'पतंजलि के महाभाष्य' से होती है| बैराट से मिनांडर की 16 यूनानी मुद्राएं प्राप्त हुई है|
मौर्योत्तर काल |
नोह(भरतपुर) - यह सभ्यता रूपारेल नदी के किनारे स्थित थी| यहां से शुंग कालीन यक्ष की मूर्ति मिली है| जिसे जाख बाबा कहा जाता है|
रंगमहल (हनुमानगढ़) - इस सभ्यता का उत्खनन कार्य डॉक्टर हन्नारिड के नेतृत्व में 1952 से 1954 तक एक स्वीडिश दल के द्वारा किया गया| यहां पर एक गुरु शिष्य की मूर्ति मिली है|
गुप्त काल
बयाना(भरतपुर ) - गुप्त काल के शासक समुद्रगुप्त ने बयाना में विजय स्तंभ का निर्माण करवाया| यह राजस्थान का पहला विजय स्तंभ था|
कुमारगुप्त के समय बयाना में सर्वाधिक गुप्तकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं|
विष्णु वर्धन ने यहां भीमलाट/ ऊषालाट का निर्माण कराया| विष्णुवर्धन के रानी चंद्रलेखा ने यहा उषा मंदिर का निर्माण करवाया| जिसे मुबारक खिलजी ने मस्जिद में बदल दिया|
गुप्त काल |
मध्यकाल में यह स्थल नील की खेती के लिए प्रसिद्ध था|
बड़वा अभिलेख (बारां ) - इस अभिलेख में मौखरी वंश की जानकारी मिलती है| हूण शासक मिहिरकुल ने बाडोली में एक शिव मंदिर का निर्माण कराया|
चारचोमा (कोटा) का शिव मंदिर भी गुप्तकालीन स्थापत्य कला का उदाहरण है|
गुप्तोत्तर काल
गुर्जर प्रतिहार की राजधानी भीनमाल थी| हेनसांग ने अपनी यात्रा के दौरान भीनमाल होकर गुजरा था| वह भीनमाल को पी लो मा लो लिखता है|
कवि माघ भी भीनमाल के थे| उनकी पुस्तक का नाम शिशुपालवध थी |
ब्रह्मगुप्त (भारत का न्यूटन) भीनमाल के थे| उनकी पुस्तकें ब्रह्मा स्फुट सिद्धांत, खंडदायक थी|
गुर्जर प्रतिहार ने अरबों को सिंध के आगे बढ़ने से रोका था|
राष्ट्रकूट की एक शाखा कालांतर में राजस्थान के राठौड़ के रूप में आई थी|
अन्य पुरातात्विक स्थल
गणेश्वर सभ्यता - यह सभ्यता नीम का थाना तहसील सीकर में कातिली नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है| ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केंद्रों में से प्राप्त तिथियों में ये सभ्यता सबसे प्राचीनतम है| इस प्रकार गणेश्वर सभ्यता को ताम्र युगीन सभ्यताओं की जननी कहा जाता है| मछली पकड़ने के कांटे की उपलब्धि से पता चलता है कि इस समय कातिली नदी में पर्याप्त जल था|
सुनारी सभ्यता - सुनारी सभ्यता झुंझुनू के कातली नदी के किनारे विकसित थी| यहां पर लोहे के अवशेष प्राप्त हुए हैं|
कुराड़ा सभ्यता - यह नागौर जिले में स्थित थी| इसे औजार नगरी भी कहा जाता था|
ईसवाल सभ्यता - ईसवाल सभ्यता उदयपुर जिले में है| इसे औद्योगिक नगरी (प्राचीन कालीन प्राचीन काल में यहां से लोहा निकाला जाता था) भी कहा जाता है |
जोधपुरा सभ्यता - साबी नदी के किनारे जयपुर में स्थित है| यह गणेश्वर सभ्यता के समकालीन थी | इसलिए इसे गणेश्वर- जोधपुरा सभ्यता कहा जाता है|
गरदडा सभ्यता - बूंदी में स्थिति थी | यहां से शैल चित्र प्राप्त हुए हैं|
नलियासर सभ्यता - सांभर जयपुर में स्थित थी |
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